अंबिकापुर | अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान पहाड़ी कोरवा जनजाति के युवक की मौत ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। गंभीर रूप से घायल युवक को रायपुर रेफर किया गया था, लेकिन वेंटिलेटर युक्त एंबुलेंस नहीं मिलने से उसे 24 घंटे तक अस्पताल में ही रोके रखा गया। बताया गया कि एंबुलेंस उस वक्त राज्यपाल के दौरे के प्रोटोकॉल ड्यूटी में लगी थी।
हादसा और इलाज में लापरवाही
बलरामपुर जिले के राजपुर ब्लॉक के ग्राम ककना (मदेश्वरपुर) निवासी गुड्डू कोरवा (34) शनिवार को सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्हें अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हालत नाजुक होने पर डॉक्टरों ने रविवार को रायपुर रेफर कर दिया, लेकिन ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सुविधा वाली एंबुलेंस न मिलने से मरीज को भेजा नहीं जा सका।
परिजनों का आरोप है कि उन्होंने 108 एंबुलेंस सेवा, डॉक्टरों और अधिकारियों से बार-बार संपर्क किया, लेकिन जवाब मिला कि एंबुलेंस राज्यपाल के प्रोटोकॉल में व्यस्त है। आखिरकार सोमवार शाम को एंबुलेंस मिली, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
रास्ते में ही टूट गई सांस
गुड्डू कोरवा को सोमवार शाम रायपुर भेजा गया, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। रायपुर पहुंचने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित किया। आरोप है कि शव वाहन तक उपलब्ध नहीं कराया गया और परिवार को निजी वाहन किराए पर लेना पड़ा।
शव रखकर हुआ प्रदर्शन
मंगलवार को मृतक के परिजन शव लेकर अंबिकापुर लौटे और मेडिकल कॉलेज अस्पताल परिसर में शव रखकर जोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस नेताओं की उपस्थिति में प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की गई। प्रदर्शनकारियों ने मुआवजे की मांग की और इसे अस्पताल की लापरवाही से हुई मौत बताया।
कांग्रेस जिलाध्यक्ष बालकृष्ण पाठक ने कहा, “यह प्रशासनिक लापरवाही नहीं बल्कि गैरइरादतन हत्या है। अगर एंबुलेंस वीवीआईपी ड्यूटी में थी, तो निजी वाहन से तुरंत व्यवस्था की जा सकती थी।”
अस्पताल प्रशासन का पक्ष
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आर.सी. आर्या ने कहा कि मरीज की हालत गंभीर थी और उसे विशेषज्ञों की देखरेख में रखा गया था। “वेंटिलेटर एंबुलेंस प्रोटोकॉल ड्यूटी में थी। जैसे ही एंबुलेंस लौटी, मरीज को रायपुर भेज दिया गया,” उन्होंने बताया।
जांच और मुआवजे का आश्वासन
मामले की जानकारी मिलने पर एसडीएम फागेश सिन्हा मौके पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि मामले की जांच कराई जाएगी और मृतक परिवार को मुआवजा दिलाने की पहल होगी। समझाइश के बाद परिजनों ने पोस्टमार्टम के लिए सहमति दी।
यह घटना एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही और वीवीआईपी कल्चर पर सवाल खड़े करती है — जब एक “राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र” की जान भी एंबुलेंस की कमी से नहीं बच पाई।
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