मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर। एमसीबी जिले के खड़गवां वनपरिक्षेत्र में 11 हाथियों का दल सक्रिय है, जिससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है। हाथियों का दल कटघोरा क्षेत्र से होकर देवडांड बीट के जंगलों में पहुंचा है। खेतों में धान की फसल पककर तैयार है, ऐसे में किसानों को डर सता रहा है कि हाथी उनकी मेहनत पर पानी न फेर दें।
कई किसान रातभर जागकर फसलों की रखवाली कर रहे हैं। हाथियों को दूर भगाने के लिए ग्रामीण टॉर्च और ढोल-नगाड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वन विभाग की टीम अलर्ट पर
रेंजर शंखमुनि पांडेय ने बताया कि हाथियों के मूवमेंट पर लगातार नजर रखी जा रही है। वन विभाग की टीमें दिन-रात गश्त कर रही है और ग्रामीणों को सुरक्षा के लिए जागरूक किया जा रहा है। हाथियों को बस्तियों से दूर रखने के लिए पटाखे, सर्च लाइट और मुनादी की व्यवस्था की गई है। ग्रामीणों को रात में खेतों और जंगल की ओर न जाने की सख्त हिदायत दी गई है।
“हाथियों से सुरक्षित दूरी बनाए रखें और किसी भी स्थिति में रात में जंगल न जाएं।” — शंखमुनि पांडेय, रेंजर
ग्रामीणों ने की कार्रवाई की मांग
स्थानीय लोगों ने वन विभाग से जल्द कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल हाथियों के आने से फसलों और मवेशियों को नुकसान होता है। विभाग को हाथियों को सुरक्षित जंगल की ओर खदेड़ने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
2016 की दर पर मिल रहा मुआवजा, किसानों में नाराजगी
किसानों को फसल नुकसान का मुआवजा अब भी 2016 की दर से मिल रहा है। वर्तमान में मुआवजा राशि ₹9,000 प्रति एकड़ तय है, जबकि एक एकड़ में धान उत्पादन से किसान को लगभग ₹65,000 की आमदनी होती है।
धान बेचने के बाद खर्च काटने पर किसान को लगभग ₹50,000 की बचत होती है, लेकिन हाथियों से नुकसान होने पर सिर्फ ₹9,000 का मुआवजा मिलता है। किसानों का कहना है कि फसल क्षतिपूर्ति की दर बढ़ाकर ₹50,000 प्रति एकड़ की जानी चाहिए।
कैसे मिलता है मुआवजा?
फसल नुकसान का मुआवजा पाने के लिए किसान अपने ग्राम पंचायत में आवेदन करते हैं। वन विभाग की टीम मौके पर जाकर नुकसान का आकलन करती है। रिपोर्ट तैयार होने के बाद फाइल मुख्यालय भेजी जाती है, जहां से सरकार की ओर से एकमुश्त भुगतान राशि जारी की जाती है।
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